कहने की आवश्यकता नहीं कि भारत प्राचीन सभ्यता वाले देशों में प्रमुख है, इसका अतीत बहुत पुराना है, इसलिए इसकी परम्पराएं और रूढ़ियाँ भी उतनी ही पुरानी हैं।
यह पुस्तक स्वधिनता के बाद भारत के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तनों के विभिन्न पहलुओं पर अनेक दृष्टियों से प्रकाश डालती है। भारतीय समाज में विविधता के साथ आर्थिक और सामाजिक पहलुओं में भी अगला और पिछला, ऊंच और नीच, गरीब और अमीर, गांव और शहर आदि ऐसे पक्ष हैं जिनकी विविधता किसी भी अर्थशास्त्री और समाजशास्त्री को कठिनाई में डालती है। लेखक की यह पुस्तक स्वधिनता के बाद बदलते हुए सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों पर गंभीरता से विचार करती है और हमारे सामने सोचने के लिए कुछ मुद्दे भी रखती है यह पुस्तक भारतीय विश्वविद्यालयों के अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र और राजनीति के अध्यापकों, छात्रों के सामने कुछ सवाल खड़े करती है और इनके अन्वेषण की दिशाओं की ओर संकेत भी करती है।