सोचती हूँ- खुद के तखैयुल से, अपने देश से, अपने देश के लोगों से, और तमाम दुनिया के लोगों से- यानी खुदा की तखलीफ से, मेरी मुहब्बत का गुनाह सचमुच बहुत बड़ा है, बहुत संगीन…
यह मुहब्बत- मेरी नज़्मों, कहानियों, उपन्यासों और वक्त-वक्त पर लिखे गए मज़मूनों के अक्षरों में कैसे उतारती रही, इसी का कुछ जायज़ा लेने के नज़रिये से, मेरी कुछ रचनाओं के कुछ अंश इस पुस्तक में दर्ज किए गए हैं…..
– अमृता प्रीतम
Yeh Kalam Yeh Kagaz Yeh Akshar ये कलाम ये कागज़ ये अक्षर
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SKU: 9789350641200
Category: Autobiography
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