‘‘ठिठुरते जाड़े में, तेरे प्रेम की गरमाहट से,
सूफ़ी क़लंदर के तन पर लिपटी, मोटी सूती चादर से,
हमारी फ़क़ीरी के आलम में, इश्क़ की नवाबी शान से,
संजीदा उमरों के बीच, दिल की शोख़ नादानियों से
तेरे कांधे पर रखे सर से, मिलने वाली राहत से,
तेरे हौसले, भरोसे और अपनेपन के आफ़ताब से
लिखे हैं
लव नोट्स!
जो तुमसे कभी कहे तो नहीं गए,
पर यकीं है कि तुमने सुन ही लिए होंगे।
ये सतरें…
मेरा इश्क़, मेरी इबादत, मेरी आश्ना, मेरा जुनूँ,
मेरी कलम, मेरा कलमा
ये हैं
मन के मंजीरे!’’
इश्क़ की हर बात कह देने के बाद भी बात अधूरी जान पड़ती है और लगता है कि बस वही तो कहना था, जो अब भी कहना बाक़ी है। कह देने और न कह पाने की इसी जद्दोजहद का नतीजा हैं, ये मन के मंजीरे…
रचना भोला ‘यामिनी’ ने पिछले दो दशकों में अनगिनत पुस्तकों के अनुवाद किये हैं। मौलिक लेखन में उनकी कृतियाँ, याज्ञसेनी और प्रयास उल्लेखनीय हैं। मन के मंजीरे में रचना भोला ‘यामिनी’ ने आत्मिक प्रेम की अनुभूतियों को बड़ी सहजता और बेहद खूबसूरती से कागज़ पर उतारा है।