9 अक्टूबर, 2012 को पंद्रह वर्षीया मलाला यूसुफजई पर पाकिस्तानी तालिबान आतंकवादियों ने जानलेवा हमला किया। दोपहर को स्कूल से आते समय आतंकवादी उसकी स्कूल बस में चढ़ गए और उस पर गोलियों की बौछार की। मलाला का कसूर सिर्फ इतना ही था कि वह चाहती थी कि वह हर रोज स्कूल जाए और शिक्षा प्राप्त करे। लेकिन लड़कियों के लिए शिक्षा पाना और पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर देश की प्रगति में हिस्सा लेना तालिबान को मंजूर नहीं क्योंकि वे इसे शरीअत के खिलाफ मानते हैं।
मलाला खुशकिस्मत थी कि वह बच गई। दुनिया-भर में इस हमले की ज़ोरदार निंदा की गई। मलाला आज लड़कियों की शिक्षा की मांग का प्रतीक बन गई है। पाकिस्तान की इस बहादुर बेटी की रोचक कहानी प्रस्तुत है इस पुस्तक में।
Malala Hoon Main मलाला हूं मैं
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Category: Autobiography
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