कुछ कहानियां अब एक ऐसे व्यक्ति के दृष्टिकोण से लिखनी चाहिए, जो जा रहा है और उन लोगों को याद कर रहा है जो उसके जीवन में अब नहीं, लेकिन कभी न कभी किसी सुंदर संदर्भ में थे – अलविदाई कहानियाँ। अब जाती जहमतों पर लिखने के मन नहीं होता। अनादि और बुनियादी प्रश्नों से जूझना चाहता हूँ, खेलना चाहता हूँ। मैं उन लेखकों में से हूँ को ख़ब्त से प्रेरित हो काम करते हैं…ख़ब्ती लेखक को पढ़ना आसान नहीं होता….हम सब सीमित हैं।हममें से कुछ अपनी कुछ सीमाओं का अतिक्रमण करने का साहस करते हैं। लेकिन उनका साहस भी सीमित है। ईश्वर दरअसल सम्पन्नों का है इसलिए विपन्नों को उसमें झूठी तसल्लियों के सिवा कुछ नहीं मिलता। हिंदी के शीर्षस्थ कथाकार-नाटककार कृष्ण बलदेव वैद की डायरी सिलसिले की चौथी और नवीनतम प्रस्तुति है ‘जब आंख खुल गई’। इसमें 1998 से 2001 तक के वैद के रचना संसार और चिंतन के सूत्र उद्घाटित हुए हैं। उनकी विशिष्ट भाषा और शैली से समृद्ध यह अत्यंत पठनीय और मर्मस्पर्शी कृति साहित्य के रसिकों और जिज्ञासुओं के लिए विशेष रूप से उपयोगी साबित होगी।
Jab Aankh Khul Gayi जब आंख खुल गई
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Category: Autobiography
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