‘‘सौ पहाड़ चढ़ लिये मैंने,
हज़ारों मील चला हूँ मैं
लाखों जीवन जी लिए
कैलाश तक पहुँचने के लिए
जो कैलाश की तरफ़ पहला कदम उठाते हैं वे जानते हैं कि न तो यह केवल तीर्थयात्रा है, न ही यह रोमांच का सफ़र है। कैलाश का संसार ऐसा है कि वहाँ हर व्यक्ति को अलग-अलग अनुभव होते हैं। मेरे लिए यह प्रकृति की अदम्यता पर अपनी सीमाओं को परखने और कुछ अवाक् कर देने वाला देखने की थी। लेकिन कैलाश ने केवल अवाक् नहीं किया एक दर्शन भी जगा दिया। कैलाश के निकट पहुँच कर आप समय की अनंतता के परिप्रेक्ष्य में जीवन के सार को समझना आरंभ कर देते हैं।
अपनी इस यात्रा के कितने ही सूक्ष्म अनुभवों को तो मैं शब्द ही नहीं दे सकूँगी, लेकिन मेरा प्रयास रहा है कि मैं बाह्य यात्रा के साथ अपने अंतस की यात्रा को भी शब्द दे सकूँ। मैं यही कहूँगी कैलाश तीर्थयात्रा नहीं यह स्वयं से साक्षात्कार की और प्रकृति से तादात्म्य की यात्रा है। सोने में सुहागा तो तब हो कि यह पुस्तक अन्य कैलाश-परिक्रमा की वांछा करने वालों के लिए पथ-प्रदर्शक साबित हो।’’
– मनीषा कुलश्रेष्ठ
मनीषा कुलश्रेष्ठ हिन्दी साहित्य की सुपरिचित लेखिका हैं जिनके अब तक सात कहानी-संग्रह और पाँच उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। मल्लिका उनका सबसे नवीनतम उपन्यास है, जिसे आलोचकों और पाठकों, दोनों की बहुत प्रशंसा मिली है।