ABOUT THE BOOK
भू-आकृति विज्ञान सर्वथा एक नवीन विषय है जिसमें पृथ्वी तल के विवरण के साथ ही स्थलरूपों की उत्पत्ति, विकास एवं परिवर्तनशील स्वरूप तथा इनके परस्पर अंत:क्रियात्मक संबंधों को बनाये रखने वाले भ्वाकृतिक प्रक्रमों का विभिन्न भौगोलिक कारकों की नियन्त्रणकारी भूमिका के संदर्भ में अध्ययन किया जाता है। प्रस्तुत पुस्तक में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुरूप इस विषय की पाठ्यचर्या प्रस्तुत की गई है जिसमें भूतल पर सम्पन्न विभिन्न भ्वाकृतिक क्रियाओं की सक्रियता एवं तद्ïजनित भू-आकारों की भौगोलिक व्याख्या प्रमुख हैं।
इसके अतिरिक्त, भू-आकृति विज्ञान की उक्त संकल्पना को स्पष्ट करते हुए इसकी विषय सीमा में निहित विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण किया गया है। साथ ही, पृथ्वी के भूगार्भिक इतिहास को इस पर हुए परिवर्तन के साथ स्पष्ट किया गया है। इसमें महाद्वीपीय विस्थापन, सागर नितल प्रसरण, प्लेट विवर्तनिकी, भूसंचालन आदि विषयों का समावेश कर अधतन् स्वरूप प्रदान किया गया है। अनाच्छादन एवं सम्बद्ध प्रक्रमों से निर्मित भू-आकारों, पर्वत निर्माण तथा अपरदन चक्र की भी सटीक व्याख्या की गई है। भू-आकृति विज्ञान के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में मानव हित में उपयोग की व्यावहारिक भू-आकृति विज्ञान विषय में विवेचना की गई है।
आशा है, प्रस्तुत कृति स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर के विद्यार्थियों के साथ ही संघ लोक सेवा आयोग, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एवं अन्य सम्बद्ध प्रतियोगी परीक्षाओं के सम्भागियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
CONTENTS
• भूआकृति विज्ञान की प्रकृति, विषय क्षेत्र एवं संकल्पनाए
• पृथ्वी का भूगर्भिक इतिहास
• पृथ्वी की आन्तरिक संरचना
• महाद्वीपीय विस्थापन एवं प्लेट विवर्तनिकी
• भू-संचलन
• भूसन्तुलन की संकल्पना
• भूकम्प
• ज्वालामुखी
• भूपर्पटी का संगठन: चट्टानें
• अनाच्छादन एवं अपक्षय
• मृदा निर्माण एवं वितरण
• ढाल
• पर्वत एवं पर्वत निर्माणकारी संचलन
• भ्वाकृतिक प्रक्रियाएं
• अपरदन चक्र की संकल्पना
• जलीय स्थलाकृतियाँ
• वायु द्वारा निर्मित स्थलाकृतियाँ
• हिमनद के कार्य एवं हिमानीकृत स्थलाकृतियाँ
• भूमिगत जल के कार्य
• तटीय भूआकृतियाँ
• व्यावहारिक भू-आकृति विज्ञान
• जलीय चक्र एवं जलमण्डल
ABOUT THE AUTHOR / EDITOR
डॉ. बी.सी. जाट, भूगोल विभाग, राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, नीम का थाना (राजस्थान) में व्याख्याता के पद पर कार्यरत हैं। आपने राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से एम.ए., एम.फिल एवं पीएच.डी. की उपाधियां अर्जित कर विगत एक दशक से शोध एवं अध्यापन में संलग्र रहते हुऐ भूगोल एवं पर्यावरण विषय में अनेक पुस्तकें लिखी हैं।