राजनीति, संस्कृति और सत्ता की केंद्रीयता पर ज़ोर देते हुए ‘शिक्षाशास्त्रीय पहलुओं का विवेचन प्रस्तुत करती है जो कल्पनाशील और रूपांतकारी तरीकों से यह समझने में हमारी मदद करते हैं कि आलोचनात्मक ज्ञान, लोकतांत्रिक मूल्य, और सामाजिक व्यवहार किस तरह से शिक्षकों, छात्रों और अन्य संस्कृति कर्मियों को वह आचार प्रदान करते हैं जिससे वे सरोकारी और जनबौद्धिकों के रूप में अपनी भूमिका को पुनर्परिभाषित कर सकें। पुस्तक भाषा और अनुभव, शिक्षाशास्त्र और मानव अभिकरण और नीति और सामाजिक दायित्वों के बीच के संबंधों पर बहुजातीयऔर बहुसंस्कृतिक समाज में लोकतांत्रिक शिक्षण की संभावनाओं में शामिल होने और उन्हें मजबूत बनाने की व्यापक परियोजना के भाग के रूप में पुनर्विचार करने का प्रयास करती है। ‘शिक्षा और संस्कृति में आलोचनत्मक अध्ययन’ सार्वजनिक शिक्षा और नागरिक जीवन की सर्वाधिक बाध्यकारी या जरूरी समस्याओं की साक्ष्य बनने और उन्हें संबोधित करने की जिम्मेदारी लेती है और संस्कृति को रचनात्मक सामाजिक परिवर्तन के लिए निर्णायक क्षेत्र और रणनीतिक शक्ति के बतौर प्रस्तुत करती है।
भूमंडलीकरण पूंजीवाद के विरुद आलोचनात्मक शिक्षा
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