जिस क्षण पहली बार बच्चा बोलता है यानी पहली बार जब वह किसी वस्तु या व्यक्ति को ध्वनि के साथ जोड़ता है तब उसके जीवन के विकास में भाषा अपनी महत्वपूर्ण और केंद्रीय भूमिका अदा कर रही होती इसमें कोई शक नहीं कि वाणी संप्रेषण का माध्यम होती है लेकिन वह उससे कुछ अधिक भी होती है, विशेष रूप से बोलने वाले के लिए। लेखक ने इस पुस्तक में बालने वाले की दृष्टि से वाणी का विवेचन करते हुए उसका महत्व प्रतिपादित किया है। जाहिर है कि लेखक के विवेचन का केंद्र बिंदु वक्ता है, श्रोत नहीं।
यह पुस्तक भाषा में दिलचस्पी रखने वाले अध्यापकों के लिए तो उपयोगी है ही, अभिभावकों के लिए भी यह कम उपयोगी नहीं है जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से उदाहरण लेकर बच्चे में होने वाले भाषाचेतना के विकास जैसे जटिल विषय को लेखक ने सहज और सरल रूप में यहां प्रस्तुत किया है।