‘बच्चे और किताबें’ पुस्तक मूलत: बच्चों की शिक्षा को केंद्र में रखकर तैयार की गई है। कहना ना होगा कि स्वतंत्र भारत के शासकों ने बच्चों की शिक्षा को बहुत गंभीरता से नहीं लिया अन्यथा शिक्षा की जो स्थिति हमारे सामने है वो न होती। प्रस्तुत पुस्तक के अलग-अलग नौ खंड बच्चों की शिक्षा के अलग-अलग पहलुओं को केंद्र में रखकर लिखे गए हैं। आजादी के इतने दिनों बाद भी हमारे शासकों में बच्चों की क्षिक्षा को लेकर स्थिति साफ नजर नहीं आती। प्राचीन धारणाओं से लेकर मध्यकालीन और आधुनिक विचारधाराएँ किसी न किसी रूप में शिक्षा को लेकर लोगों के मन में मौजूद हैं और आपस में टकराती हैं।
इस पुस्तक के अलग-अलग लेख बच्चों की शिक्षा संबंधी उनका विवेचन विश्लेषण करते हैं और अपने विचारों के पक्ष में तर्क भी पेश करते हैं।
हिंदी में बाल साहित्य लेख अनेक दृष्टियों से हिंदी में उपलब्ध बाल साहित्य की समस्याओं को उजागर करते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि इन लेखों में जो ठोस सुझाव दिए गए हैं उससे पाठक सहमत ही हों, लेकिन ये लेख बच्चों की शिक्षा को लेकर अब तक किए गए प्रयासों के अनेक पहलुओं पर सवालिया निशान लगाने हैं। इनमें जो बातें कही गई हैं, उनमें वजन है और हमें इस दिशा में गंभीरता से विचार करने के लिए मजबूर करती हैं।
ये कुछ बातें हैं जो इस पुस्तक के पाठकों को विचार के लिए प्रेरित करेंगी, विशेष रूप से हमारे युवा अध्यापक अगर चाहें तो इससे कुछ सीख ले सकते हैं।