सहजानंद सरस्वती की वैचारिक विकास की यात्रा काफी लंबी और उतार-चढ़ाव वाली है। अपने प्रारंभिक जीवन में सहजानंद ने विचारों के अनेक रूपों से होकर गुजरे हैं। इसका एक रूप हमें उनकी पुस्तक ‘ब्रह्मर्षि वंश बिस्तर’ में देखने को मिलता है लेकिन जीवन के कठोर अनुभवों ने स्वामी जी को अपेक्षाकृत अधिक यथार्थ की जमीन पर ला खड़ा किया जहां उस दौर में किसान आंदोलन राष्ट्रीय आंदोलन का एक हिस्सा था। इस आंदोलन के पीछे सक्रिय विचारों के बदलते हुए सोपान दिखाई पड़ते हैं। इस पुस्तक में इन विचारों की पृष्ठभूमि को बहुत स्पष्ट रूप से रेखांकित किया गया है, जहां उसके बदलते हुए रूप दिखाई पड़ते हैं।
किसान आंदोलन की वैचारिक पृष्ठभूमि
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Category: Sociology
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