इस महत्वपूर्ण पुस्तक में पाओलो फ्रेरे का मूल संदेश यह है कि व्यक्ति जिस सीमा तक अपनी प्राकृतिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक वास्तविकता के बारे में सवाल करता है वह उसी हद तक सीख पाता है। सवाल करना टेक्नोक्रेट ‘समस्या समाधान’ हद उलट है। दूसरी स्थिति में विशेषज्ञ समस्या से थोड़ी दूरी बनाता है, घटक हिस्सों में उसका विश्लेषण करता है, सर्वाधिक समक्ष तरीके से समस्या के समाधान के साधन तैयार करता है और फिर रणनीति या नीति को गले उतारता है। फ्रेरे के अनुसार इस तरह का समाधान मानव अनुभव की समग्रता को विरूपित करता है और ऐसा करते समय उसे समाधान योग्य आयामों का रूप दे देता है। लेकिन उसके अर्थ में सवाल करने का मतलब है संपूर्ण वास्तविकता को ऐसे प्रतीकों में व्यवस्थित करने के काम में पूरे मानव समूह को लगाना जो उसमें आलोचनात्मक चेतना पैदा कर सकें और प्रकृति और सामाजिक ताकतों के साथ संबंधों को बदलने में उसे समक्ष बना सकें। इस चिंतनशील समूह कार्य को आत्ममोह या आत्मपरकता से बचाने के लिए सभी भागीदारों को एक दूसरे के साथ संवाद में लगाना जरूरी है ताकि वे अपनी सामाजिक वास्तविकता को बदलने के माध्यम बन सकें। इसी तरह से लोग अपने इतिहास की वस्तु बनने के बजाय उसके कर्ता बनते हैं।
आलोचनात्मक चेतना के लिए शिक्षा
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Category: Education
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