यह पुस्तक न्यूजीलैंड के माओरी बच्चों की शिक्षा को समर्पित एक अध्यापिका के जीवनानुभवों का निचोड़ और बालकेन्द्रित शिक्षण पद्धति का सरजनात्मक दस्तावेज़ है। इसे ही लेखिका ने ‘सहज शिक्षण’ कहा है। इस शिक्षण विधि में बच्चों को केंद्र में रखकर उनकी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के आधार पर शिक्षा पद्धति का तानाबाना तैयार किया गया है। बालकेंद्रित शिक्षण पद्धति की वकालत करने वाली यह पुस्तक स्कूल व्यवस्था या उसकी प्रणाली की आलोचना नहीं करती है, बल्कि काम का तरीका सबकुछ बदल देने के संकल्प का आदर्श प्रस्तुत करती है।
बच्चों को केंद्र में रखकर शिक्षा देना बहुत कठिन काम है। अगर अध्यापक में कल्पना, संवेदनशीलता और आनंद पैदा करने की क्षमता नहीं है तो वह अपनी कक्षा को जीवंत नहीं बना सकता है और आनंद रहित शिक्षण बच्चों के लिए दंड है और अध्यापक की असफलता का द्योतक भी।
प्रस्तुत पुस्तक में सीखने-सिखाने के सारे अनुभव, कार्य, नवादर और प्रयोग सर्जनात्मक रूप में प्रस्तुत किए गए हैं। इसको पढ़ते समय पाठक ऐसा महसूस करेगा कि यह शिक्षा की पुस्तक न होकर बच्चों व जनजातियों के बीच आनंद की अनेक घटनाओं की कहानी है।
बच्चों के लिए सीखने का अर्थ खेलना है, स्वप्न देखना है और उस स्वप्न के अर्थ खोजना है। इस पुस्तक में लेखिका ने ऐसे अनेक स्वप्नों के शब्द चित्र प्रस्तुत किए हैं।