इटली के एक छोटे से शहर से ग्रामांचल के आठ बच्चों ने मिलकर यह पुस्तक लिखी है। इसमें जिन समस्याओं को उठाया गया है, वे समस्याएं विकासशील दुनिया के तमाम देशों के असंख्य अभिभावकों की भी हैं। इटली के गरीब मां-बाप पर इस पुस्तक का जबर्दस्त असर हुआ है। इस पुस्तक की विश्वव्यापी लोकप्रियता का कारण यही विषयवस्तु है जिसमें गरीब जनता के सरोकार व्यक्त हुए हैं। पुस्तक में इटली के ‘मध्यवर्गोन्मुखी’ शिक्षाव्यवस्था के नैतिक आधार को चुनौती दी गई है। इस व्यवस्था के अंतर्विरोधों को अत्यंत संयत और व्यवस्थित तरीके से यहां उद्घाटित किया गया है।
साथ ही इस पुस्तक के लेखकों ने वहाँ की शिक्षाव्यवस्था में भी सुधार के लिए अत्यंत उपयोगी और रचनात्मक सुझाव भी रखे हैं। इन सुझावों से उनकी गहरी अंतर्दृष्टि का आभास मिलता है। यह पुस्तक दुनिया के प्रत्येक भाग में रहने वाले गरीबों को अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति सचेत करती है। इसमें जिस संयत और शालीन क्रोध की अभिव्यक्ति हुई है, वह किसी भी देश या प्रदेश के मजदूर या किसान का क्रोध हो सकता है। उसको साफ दिखता है कि हर स्कूल में मध्यवर्गीय बच्चे उपेक्षा का शिकार होते हैं। भारत के गरीब अभिभावकों को भी यह पुस्तक बेचैन करेगी। आज की भारतीय शिक्षाव्यवस्था भी क्रमशः उसी दिशा में बढ़ रही है।
पुस्तक आम शिक्षकर्मियों, राजनीतिककर्मियों, अभिभावकों और प्रबुद्ध नागरिकों के लिए समान रूप से उपयोगी है। विश्व की अनेक भाषाओं में इस पुस्तक के अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं।