भारत में इतिहासलेखन का स्वरूप पश्चिम के इतिहासलेखन से भिन्न रहा है। इसलिए प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोतों की जानकारी हम उस प्रकार के स्रोतों से नहीं ले सकते हैं जिस प्रकार के स्रोतों के आधार पर पश्चिम में इतिहासलेखन होता रहा है। प्रस्तुत पुस्तक इस बात को स्पष्ट करती है कि हमारे प्राचीन इतिहासकार कौन हैं तथा उनके लेखन से किस प्रकार इतिहास की सामग्री निकाली जा सकती है।
इस पुस्तक में पूर्ववैदिक काल से लेकर पूर्व मध्यकाल के डेढ़ हजार वर्षों के समय को समेटा गया है। यह पुस्तक न केवल इतिहास के राजकीय मार्गों पर प्रकाश डालती है बल्कि अतीत की पुनर्रचना पर प्रकाश डालती है बल्कि निश्चित ही इसमें समग्रता के साथ कुछ गलीकूचों और अवरोधों को भी उजागर करती है। कहना न होगा कि इतिहासलेखन पर केन्द्रित यह न केवल मध्यकाललीन मानसिकता पर प्रकाश डालता है, बल्कि अतीत की पुनर्रचना करने का नया मार्ग भी बताता है।