महाभारत में सबसे विशेष चरित्र भीष्म पितामह का है। अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए उन्होंने आजन्म ब्रह्मचारी रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की और साथ ही राजसिंहासन पर अपने अधिकार को भी तिलांजलि दी। दुर्योधन के विचारों, नीतियों और दुष्कर्मों के घोर विरुद्ध रहते हुए भी कौरवों के पक्ष की सेवा करने की विवशता को स्वीकार किया। राजदरबार में द्रोपदी चीरहरण के समय क्रोध और लज्जा से दांत पीसकर रह गए। परंतु खुलकर विरोध करने में विवश रहे। महाभारत युद्ध में भी कौरव सेना का सेनापतित्व करना पड़ा। जबकि मन से पांडवों के पक्षधर थे। उनका हृदय पांडवों के साथ था, शरीर कौरवों की सेवा में। अनेक अंतर्विरोधों से भरे भीष्म पितामह के चरित्र को बहुत ही पैनी दृष्टि से परखते हुए रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है इसके लेखक भगवतीचरण मिश्र ने।
Main Bheeshm Bol Raha Hoon मैं भीष्म बोल रहा हूं
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Category: Literature & Fiction
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